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Saturday, January 18, 2014

किस्सा ''मौत'' का।



जिंदगी, फुटपाथ पर बिकने वाली सब्जी नहीं, जब चाहा तब खरीद लिया।  जिंदगी तो जाल है - रिश्तों का ,सपनों का ,अपनो का। और यही जिंदगी जब जरुरत और जज्बात में सिमट जाती है।  तब शुरू होती है असली जिंदगी। जो डर गयावह मर गया। जो लड़ा, वह अमर हो गया। जिंदगी के सफर में कभी -कभी ऐसे किस्से सुनाई देते है। जिनके बारे में जानकर पूरी दुनिया हिल जाती है। किस्सा कोई भी हो सुनने और देखने में  मजा सभी को आता है। लेकिन  जब किस्सा  जोरदार हो, तो और मजा आता है।  कुछ किस्सा  समाज का होता है,कुछ समाज के लिए होता है।  कहने का अर्थ सिर्फ इतना की किस्सा हो। चाहे  हमारा या आपका। आज किस्सा  एक ''मौत''  का है। देखा भी होगा ,सुना भी होगा।  बात कर रहा हुँ,उस किस्से कि जिसने पूरे समाज को सोचने और समझने पर विवश कर दिया है।  जब पति और पत्नी के बीच कोई तीसरा आ जाये तो वह ''विलेन'' कि भूमिका बेहतर तरीके से निभाएगा। इसकी पूरी गारंटी और विस्वास  भी है।


पूरी दुनिया उस दिन इन्हे जान समझ पायीजब आई o पीo एल  का विवाद हुआ।  एक पत्नी के साथ साथ अच्छी मित्र बनकर जीवन व्यतीत करने वाली महिला के जीवन में भूचाल तब आया। जब उसे पता चला कोई मेरे पति के जीवन में आ गया है। किस्सा ''मौत'' का यह पात्र आज दुनिया में नहीं है।  लेकिन एक समाज को सन्देश जरुर दे गया कि  स्त्री सब कुछ बर्दास्त कर सकती है , लेकिन जिन्दा रहते किसी को अपने पति के पास फटकने नहीं देगी। चाहे उसके लिए अपनी जान ही क्योँ न देनी पड़े।



केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री।  प्रतिभा परिचय कि मोहताज नहीं होती, लेकिन जब किसी के साथ किस्सा जुड़ जाये तो बताना पड़ता है कि वह इंसान कौन है।  यही नहींयह इंसान ट्विटर कि दुनिया का बादशाह भी है। उनका परिचय थोडा अलग तरीके सा दिया जाये तो यह इंसान किसी का पति भी है। जो  इस दुनिया में नही है।


मेरे जहन में बस्ते हो , मेरे खयालो में रहते हो। तुम ही तो हो जो दिल और दिमाग में दोनों में रहते हो। वैसे इन मोहतरमा का स्थान  पकिस्तान है।  पेशा पत्रकारिता का। रिश्ता भारत के वीर सपूत माननीये के साथ। विलेन कि भूमिका इन्ही कि है। जो समय बतायेगा कि इनका इलाज क्या होगा।



अंतिम पड़ाव अब जब सब कुछ ख़त्म हो गया है। ''मौत '' अपनी दुनिया में सो रही है। अग्नि के सम्मुख साथ फेरे लगने वाले पति जी ''मौत'' का फेरा लगाएंगे।  पूरी दुनिया मीडिया के कारनामे देखेगी। कोई एंकर चिलाएगा - शाम  ४ बजे देखिये जलती हुई लाश। कुछ लोग चाय  के साथ पकिस्तान में बैठ कर  टेलीविजन पर जलती हुई ''सौतन'' को देखेंगे। सब ख़त्म हो गया।  अब बाक़ी  कहानी फिर कभी ,पर यह सिर्फ एक कहानी नहीं, आज हर घर में एक कहानी है।  कोई अपनों ने लड़ रहा है। कोई सपनों से। 







Krishna Pandey
Student
B.A in Media Studies
University Of Allahabad

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