कश्मीर कभी भी भारत का अंग नहीं रहा: अरुंधति
अपने बयानों से हमेशा विवादों में रहने वाली लेखिका अरुंधति राय ने जम्मू कश्मीर के भारतीय संघ में विलय की वैधानिकता पर प्रश्न खड़ा करने के बाद कहा कि यह राज्य कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा.
राय विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर यहां कश्मीर से जुड़े विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित कर रही थी.
लेखिका ने कहा कि कश्मीर भारत का कभी भी अभिन्न हिस्सा नहीं रहा. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है. यहां तक कि भारत सरकार ने इसे स्वीकार किया है. राय ने आरोप लगाया कि ब्रिटिश शासन की समाप्ति के बाद भारत औपनिवेशिक शक्ति बन गया.
मेरे दोस्त अनूप तिवारी ने मुझसे पूछा अरुंधति रॉय कौन है?केंद्र सरकार क्या अरुंधति राय के खिलाफ ‘देशद्रोह’ का मामला चलाएगी? यह मांग भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने की थी और शुरुआती संकेतों के अनुसार, सरकार इस दिशा में कदम उठाने की सोच भी रही थी। भाजपा ने यह मांग क्यों की, यह बताने की जरूरत नहीं। लेकिन अरुंधति ने जो कुछ कहा है, उस पर जरूर थोड़ा रुककर समझने की जरूरत है। नक्सल ठिकानों पर गुपचुप जाने और उनके गुणगान में लंबा लेख लिखकर वह पहले भी विवादों में रही हैं। कश्मीर पर दिए अपने जिस ताजा बयान के चलते वह फिर चर्चा में आई हैं, कुछ वैसा ही स्टैंड उन्होंने डेढ़-दो साल पहले कश्मीर पर लिखे अपने एक और चर्चित लेख में लिया था। तब वह कश्मीरियों के आत्मनिर्णय की बात कर रही थीं।
उनका ताजा बयान कश्मीर के भारत में विलय पर सवाल उठाने वाला है और इसी कारण जेटली को ‘देशद्रोह’ का मामला उठाने तथा सरकार को ऐसे किसी कदम पर विचार करने की जरूरत महसूस हुई। कल फिर अरुंधति ने सफाई दी कि उन्होंने वही कहा है, जो कश्मीरी वर्षों से कहते आ रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि यह मसला पहली बार अरुंधति ने उठाया हो। गिलानी तो इसी बुनियाद पर राजनीति कर रहे हैं
और भारत सरकार समेत सारे लोग उनसे रिश्ते रखे हुए हैं। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी यही स्टैंड लेने की गलती की और उनकी चौतरफा आलोचना हुई। लेकिन इन सबकी बातें राजनीति का हिस्सा हैं।
जबकि अरुंधति के कहने का अर्थ अलग है। पर यह हैरानी की बात है कि आज की दुनिया की हकीकत में किसी की तुलना में अच्छी जानकार लेखिका इस तरह का गैर जिम्मेदारी का बयान दे कैसे दे सकती है। अगर यह मान भी लें कि कश्मीरी भारत सरकार के तौर-तरीकों से बहुत नाराज हैं और पाकिस्तान के हिस्से में गए अपने भाई-बंदों के हाल से भी खुश न होकर ‘आजादी’ की मांग कर रहे हैं। पर आज की दुनिया में छोटे मुल्कों की स्थिति और कश्मीर में अभी चल रहे भांति-भांति के खेल को देखते हुए आजाद कश्मीर की दुर्गति की कल्पना मुश्किल नहीं है। और अरुंधति राय जैसे लोगों को भारतीय राष्ट्र के निर्माण और कश्मीर से भारत के जुड़ाव के हर पहलू का इतिहास मालूम होना चाहिए। कश्मीरियों ने मजहब के नाम पर बने मुल्क में जाने के बजाय भारत से जुड़ने का फैसला किया और तब दोनों ओर के जिम्मेदार प्रतिनिधियों ने विलय के प्रस्ताव पर दस्तखत किए थे। यह सब कहने के बाद भी अच्छा लगेगा कि अरुंधति की बातों को नजरंदाज किया जाए-मुकदमे और हंगामे का मतलब इस मुद्दे को बेमतलब महत्व देना होगा।
केंद्र सरकार क्या अरुंधति राय के खिलाफ ‘देशद्रोह’ का मामला चलाएगी? यह मांग भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने की थी और शुरुआती संकेतों के अनुसार, सरकार इस दिशा में कदम उठाने की सोच भी रही थी। भाजपा ने यह मांग क्यों की, यह बताने की जरूरत नहीं। लेकिन अरुंधति ने जो कुछ कहा है, उस पर जरूर थोड़ा रुककर समझने की जरूरत है। नक्सल ठिकानों पर गुपचुप जाने और उनके गुणगान में लंबा लेख लिखकर वह पहले भी विवादों में रही हैं। कश्मीर पर दिए अपने जिस ताजा बयान के चलते वह फिर चर्चा में आई हैं, कुछ वैसा ही स्टैंड उन्होंने डेढ़-दो साल पहले कश्मीर पर लिखे अपने एक और चर्चित लेख में लिया था। तब वह कश्मीरियों के आत्मनिर्णय की बात कर रही थीं।
ReplyDeletescholastic views!!....i like reading all this.now i m also going to initiate.
ReplyDeletestaggring articl prtk.....keep it up
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